अब भी नहीं जागे तो उर्दू का हाल भी फारसी जैसा होगा: क़मर मिसबाही

मेराज़ आलम ब्यूरो रिपोर्ट =सीतामढ़ी दुनिया में केवल वही कौम जिन्दा रहतीहैं जिनकी अपनी राष्ट्रीय और भाषाई पहचान होती है और जो कौम अपनी भाषाई पहचान खो देती है वह यकीनन अपनी राष्ट्रीय गरिमा भी खो देती है। यह बातें बिहार स्टेट उर्दू टीचर्स एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष क़मर मिसबाही ने शुक्रवार को पत्रकारों से प्रेस वार्ता के दौरान खास बातचीत करते हुए कहीं।

उन्होंने कहा कि उर्दू हमारी मातृभाषा ही नहीं हमारी सभ्यता और संस्कृति भी है इसलिए हमें इसके प्रचार और विकास के लिए व्यावहारिक कदम उठाने होंगे तभी हम इस भाषा को बचा पाएंगे। क़मर मिसबाही ने कहा कि भाषा के विकास और प्रसार का कार्य न केवल सरकार का है बल्कि आम जनता का भी है और अपनी भाषा को जीवित रखना हम सब की बड़ी जिम्मेदारी है.

उन्होंने कहा कि सरकार हमें उर्दू पढ़ने और पढ़ाने का मौका दे रही है फिर भी हम इसका सम्पूर्ण लाभ नही उठा रहें हैं जो आश्चर्य की बात है हमें इसे गम्भीरता से लेना चाहिए। क़मर मिसबाही ने कहा कि जीवित कौम ही अपनी मातृ भाषा के प्रति बहुत संवेदनशील होती हैं और अपनी मातृ भाषा का जायज़ा लेती है।हकीकत में उर्दू कीसी धर्म विशेष की भाषा नही बल्कि यह तो हम भारतीयों की भाषा है जिस से प्यार और महब्बत और संस्कृति झलकती है। उन्होंने कहा कि हमें अपने बच्चों को प्राथमिक स्तर से ही उर्दू सिखाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि वास्तव में लोगों की असावधानी के कारण यह भाषा लुप्त होती जा रही है। अंत में उन्होंने कहा कि अभी समय है कि हम अपनी ज़िम्मेदारी को समझें और उर्दू के प्रचार-प्रसार में अधिक से अधिक भाग लें। यही हमारी सफलता होगी।